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बडा आसान होता है दिलो का यूँ निगल जाना

बडा आसान होता है दिलो का यूँ निगल जाना ।
बडा दुस्तर सदा होता किसी का बन के रह पाना ।
उमीदो पर गढी जाती सपन की जिस हवेली को ।
जमाना दफ्न करता है बनाये आशियानो को ।।

पलक भी जुल्म लगती है फकत गिरना भी आँखो पर ।
कभी मन डूब जाता है मिलाकर आख-आँखो  पर ।।

विवशता घेर लेती है निगाहे फेरना पडता ।
चिताओ सी जली काया निकलना दूर ही पडता ।
सपन को घेर बैठी है तरानो से भरी महफिल ।
उसी को ही बताना था सुनाना सब को है पडता ।।

चतुर है या कहीं भोली नैन सर से विधा जिसके ।
सरलता से खरीदी है रहा सूखा बिना रसके ।
अकेला कर गयी यादे रहा दिखता हूँ मेले में ।
रही खाली अटारी जो दिखाया है वही बसके ।।
डा दीनानाथ मिश्र

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4 Comments

Varsha_Upadhyay

24-Sep-2023 04:59 PM

Nice 👌

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सुन्दर सृजन और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Gunjan Kamal

24-Sep-2023 08:48 AM

बहुत खूब

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